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इनकी कहानी उनके लिए प्रेरणादायक है, जिन्हें हालातों के चलते अपनी क्षमताओ पर शक है

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डेस्क। UPSC के नतीजों में टॉप करने वालों से इतर भी कई ऐसे नगीने हैं जिन्होंने जाने कैसे कैसे हालातों का सामना करते हुए भी न सिर्फ अपना सपना पूरा किया बल्कि अपने माता पिता और शहर तथा राज्य का नाम देश भर में ऊंचा किया ।

गौरतलब है कि राजस्थान के जैसलमेर में रहने वाले देशलदान ने आईएएस में 82वीं रैंक हासिल कर अपने घर-परिवार, समाज और जिले का भी नाम रोशन किया है। देशलदान के पिता चाय बेचने का काम करते है। इस लड़के ने साबित कर दिया है कि भले ही वह संसाधन संपन्न नहीं है, लेकिन सफलता के लिए जुनून की जरूर होती है ना कि पैसों की।

देशलदान की पढ़ाई के दौरान उसके पिता ने ब्याज पर पैसे लेकर भी उसकी शिक्षा को लगातार जारी रखा और अब वह मेहनत सफल हो गई। बचपन से ही देशलदान पढ़ाई में अव्वल था और उसके पिता ने भी हर मौके पर अपने बेटे का सहयोग किया। यूपीएससी सिविल सर्विस 2017 के परिणामों में जैसलमेर निवासी देशलदान का चयन हुआ है। उन्होंने 82वीं रैंक हासिल की है। पूर्व में उनका चयन आईएफएस में भी हो चुका है।

इसी प्रकार यूपीएससी की मुख्य परीक्षा में नरसिंगपुर की तपस्या परिहार ने 23 वां रैंक प्राप्त किया हैं। आईएएस बनी तपस्या परिहार का पिता किसान हैं और मां गांव की सरपंच। तपस्या परिहार ने कक्षा 8वीं से 12वीं तक की पढ़ाई केन्द्रीय विद्यालय नरसिंहपुर से की। तपस्या ने बताया कि गणित विषय से 12वीं करने के बाद आईएएस बनने का ही सपना आंखों में बुना। पुणे के आईएलएस कॉलेज से 5 साल लॉ की पढ़ाई की। लॉ की पढ़ाई खत्म होते ही तपस्या ने यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी।

तपस्या परिहार ने ढाई साल दिल्ली में रहकर यूपीएससी की तैयारी की और उसके प्रयास सफल रहे। तपस्या ने बताया कि पहले अटैम्प्ट में असफल होने के बाद एक स्ट्रेटजी बनाई, जिसमें 8-10 घंटे स्टडी की और हर पल अपने लक्ष्य को ध्यान में रखा। कड़ी मेहनत, ईमानदारी और अनुशासन मेरी स्ट्रेंथ है। जिसकी वजह से मैं लक्ष्य को पाने में सफल रहीं।

जबकि वहीं बिहार में भागलपुर के कहलगांव में मिठाई की दुकान चलाने वाले जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता की बेटी ज्योति कुमारी ने सिविल सेवा परीक्षा 2017 में 53वीं रैंक हासिल की है। ज्योति बताती हैं कि बचपन से डॉक्टर बनने की इच्छा थी, लेकिन कहलगांव से मैट्रिक करने के बाद उसके मन में आईएएस बनने का ख्याल आया। लक्ष्य बनाकर तैयारी आरंभ की। फिर रांची के जवाहर विद्या मंदिर से इंटर करने के बाद तैयारी करने के उद्देश्य से दिल्ली पहुंची। वहां दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से इतिहास में स्नातक किया।

ज्योति ने इस दौरान पॉकेट खर्च निकालने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का भी कार्य किया। बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। 2014 में परीक्षा में 524 वीं रैंक आई। रैंक ने थोड़ी मायूसी दिलाई। लेकिन हिम्मत नहीं हारी। मन में ख्याल आया कि कुछ रह गया है। इसे मेहनत के बल पर पूरा किया जा सकता है। मेहनत के साथ फिर जुट गई। आर्थिक कारण बाधा न बने, इसके लिए संचार भवन में सहायक निदेशक के पद पर योगदान दिया। नौकरी के साथ-साथ तैयारी जारी रखी। ज्योति अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता को देती हैं। ज्योति की मां शोभा देवी पिता के साथ दुकान चलाने में सहयोग करती हैं।

इसके अलावा UPSC में सफलता पाने वाले तमाम और भी ऐसे नगीने हैं जिनकी संघर्ष की कहानी न सिर्फ तमाम युवाओं के लिए प्रेरणादायक है। जिनको अपने हालातों पर शक है। क्यों कि इन तमाम नगीनों ने यह साबित कर दिखाया कि जब मन में कुछ करने की हो चाह तो खुद ब खुद बनती जाती है राह।

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