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अबकी बार फिर वो ही करारी हार, ऐसे में क्या वापसी कर पायेगी मोदी सरकार

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डेस्क। हाल में हुई गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में हुई हार से भी सबक न लेने वाली भाजपा को आखिरकार एक बार फिर उत्तर प्रदेश में बुरी हार का समना करना पड़ा जो कि बेहद ही शर्मनाक और अफसोसनाक है हालांकि कैराना सीट पर तो प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री समेत तमाम बड़े दिग्गजों ने अपना जोर लगा दिया था हद तो ये है कि इस सीट से सांसद रहे और बखूबी यहां की जनता में लोकप्रिय रहे नेता हुकुम सिंह के निधन की सहानुभूती तक भाजपा वोट में तब्दील न करवा सकी। कुल मिलाकर जो हकीकत सामने आई है उस पर अब बेहद ही गंभीरता से चिंतन और मनन जरूरी हो गया है।

गौरतलब है कि जैसा कि हाल की गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में सपा बसपा गठबंधन के हाथों करारी शिकस्त के बाद माना जा रहा था कि अब शायद भाजपा उत्तर प्रदेश में अपनी बिगड़ती स्थिति को सुधारने की भरपूर कोशिशे करेगी और उसकी ही बानगी थी कि सबकी निगाहें कैराना उपचुनाव पर बखूबी लगी हुई थीं और ऐसा माना जा रहा था कि इस सीट का नतीजा काफी हद तक भाजपा की आगामी 2019 के लोकसभा चुनावों की दशा और दिशा निर्धारित करेगा। लेकिन जैसा कि नतीजा आया है वो साफ जाहिर करता है कि उत्तर प्रदेश में ही नही वरन देश भर में काफी हद तक काफी कुछ भाजपा के हाथ से निकल चुका है।

ज्ञात हो कि 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 282 सीटें हासिल हुई थीं। जिसके चलते बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई थी। ऐसे में पीएम मोदी की दो लोकसभा सीटों पर जीत और गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद खाली हुई महाराष्ट्र की बीड़ सीट पर उप-चुनाव कराना पड़ा। 2014 में हुए बीड़ और नरेंद्र मोदी की सीट वडोदरा में बीजेपी ने बेहद जोरदार तरीके से उप चुनाव जीता। भाजपा की इस रफ्तार पर पहली बार रोक तब लगी जब बीजेपी ने 2015 में एमपी के रतलाम सीट कांग्रेस के हाथों गंवा दी। इसके साथ ही साल 2017 और 2018 में हुए 3 लोकसभा उपचुनाव में इस लहर की रफ्तार कुंद पड़ी और बीजेपी ने गुरदासपुर, अलवर, अजमेर, सीटें गंवा दीं।

वहीं इसी साल मार्च में यूपी के गोरखपुर और फूलपुर में हुए उपचुनाव में बीजेपी को करारी शिकस्त मिली थी। यहां की दोनों सीटों पर सालों तक दुश्मन रही एसपी-बीएसपी ने मिलकर बीजेपी के साथ मुकाबला किया था। जिसके चलते गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा का उपचुनाव सीट हारने के बाद घटकर 272 रह गईं हालांकि अब पालघर सीट जीत के बाद 273 हो गई है। इसका बड़ा कारण ये है कि उपचुनाव में बीजेपी अपनी कई सीटों को बचाने में नाकाम रही है। साल 2014 से अब तक हुए उपचुनाव में बीजेपी अपनी सिर्फ 5 ही सीटें बचा पाई है।

इतना ही नही और तो और पहले से अपने कब्जे में रही महाराष्ट्र के पालघर को छोड़  भंडारा-गोदिया सीट भी एनसीपी के हाथों हार गई। यानि, कर्नाटक में शिकस्त के बाद बीजेपी के लिए यह एक और बड़ा झटका है क्योंकि ये सीटें पहले बीजेपी के पास थी जिनमें से वह सिर्फ एक पर ही वापसी कर पाई है।

अगर गौर से देखें तो बीते चार सालों में भाजपा ने दस लोकसभा सीटें अपने हाथों से गंवा दी हैं। जिनमें उत्तर प्रदेश की तीन जिनमें फूलपुर, गोरखपुर तथा कैराना शामिल हैं। इसी प्रकार मध्य प्रदेश की एक सीट रतलाम समेत राजस्थान की दो सीटें अजमेर तथा अलवर भी शामिल हैं। वहीं कर्नाटक की दो सीटें जिनमें बेल्लारी तथा शिमोगा शामिल हैं। इसके अलावा पंजाब की एक सीट गुरदासपुर और महाराष्ट्र की गोंदिया सीट भी है जो भाजपा अपनी ही गलतियों के चलते अपने हाथों से गंवा चुकी है।

जानकारों के मुताबिक भाजपा अभी भी जमीनी हकीकत से परे हवा-हवाई दावों और छलावों में उलझी हुई है वहीं विपक्ष उसकी इसी कमजोरी का फायदा उठा रहा है और जनता जो काफी हद तक भाजपा द्वारा खुद को ठगा महसूस कर रही है। उसका ही नतीजा है कि जैसे-जैसे जनता मौका पा रही है भाजपा को ठिकाने लगा रही है। लोगों का मानना है कि अगर अब भी जो इन्होंने जनता के हितों की अनदेखी की तो फिर आगामी 2019 के लोकसभा चुनावों में जनता इनको ठिकाने लगाने में कोई कसर नही छोड़ेगी।

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