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बीजेपी नेता देने से पहले कोई भी बयान, झांक कर देख ले खुद अपना गिरेबान: मायावती

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लखनऊ।  बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने बीजेपी की केन्द्र व इनकी विभिन्न राज्य सरकारों पर ग़रीब, मज़दूर, किसान, दलित व पिछड़ा वर्ग का घोर विरोधी होने आरोप लगाते हुये कहा कि बीजेपी के नेताओं को इन वर्गों के बारे में कोई भी बात करने के पहले अपने गिरेबान में झाँक कर जरूर देखना चाहिये कि इनका अपना रिकार्ड कितना ज्यादा जातिवादी व दाग़दार है।

मायावती ने कहा कि बीजेपी की केन्द्र व राज्य सरकारें एवं खासकर उत्तर प्रदेश की सरकार ग़रीबों, मज़दूरों, किसानों, दलितों, आदिवासियों व पिछड़ों का शोषण व उत्पीड़न कर रहीं है तथा इन वर्गों को इनके जीने के मौलिक अधिकार व आरक्षण के संवैधानिक अधिकार से भी वंचित रख रही हैं। यही कारण है कि आरक्षण के आधिकार को पूरी तरह से निष्क्रिय व निष्प्रभावी बना दिया गया है तो दूसरी तरफ सरकार की बड़ी-बड़ी परियोजनायें ज़्यादातर बड़े-बड़े पूंजीपतियों की निजी क्षेत्र की कम्पनियों को सौंपी जा रही हैं जहाँ आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है।

उन्होंने न्यायपालिका के साथ-साथ शिक्षण संस्थानों सहित प्राइवेट सेक्टर आदि में भी आरक्षण की सुविधा की माँग करते हुये उन्होंने कहा कि आरक्षण को नकारात्मक सोच के साथ देखने के बजाए इसे देश में सामाजिक परिवर्तन के व्यापक हित के तहत् एक सकारात्मक समतामूलक मानवतावादी प्रयास के रूप में देखना चाहिये। यही कारण है कि बी.एस.पी. अपरकास्ट समाज व धार्मिक अल्पसख्ं यक वर्ग के ग़रीबों को भी आरक्षण की सुविधा देने की पक्षधर है और इसके लिये संविधान में उचित संशोधन करने की माँग को लेकर संसद के भीतर व संसद के बाहर लगातार संघर्ष करती रही है।

उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकारें देश की आमजनता के प्रति अपनी कानूनी व संवैधानिक ज़िम्मेदारियों से भागने के लिये ही हर दिन नये-नये शिगूफे छोड़ती रहती हैं व लोगों की धार्मिक भावनायें भड़काने का प्रयास करती रहती हैं ताकि इनकी सरकार की घोर विफलताओं पर से लोगों का ध्यान बंटा रहे। इसके साथ ही देशभक्ति का ढिंढोरा पीटते रहना इनकी आदत सी बन गयी है जिसका ख़ास मकसद इनकी पार्टी व सरकार की जनविरोधी नीयत, नीति व करतूतों पर पर्दा पड़ा रहे।

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि  लगभग 42 वर्ष पहले कांग्रेस पार्टी द्वारा देश में थोपी गई ’’राजनीतिक इमरजेन्सी’’ की याद बार-बार ताज़ा की जाती है जबकि पूरा देश पहले इनके ’’नोटबन्दी की आर्थिक इमरजेन्सी’’ की जबर्दस्त मार झेलने के साथ ही पिछले चार वर्षो से हर मामले मे ’’अघोषित इमरजेन्सी’’ जैसा माहौल हर स्तर पर लोगो को झेलना पड़ रहा है। इससे हर समाज, हर वर्ग व हर व्यवसाय के लोग काफी ज्यादा घुटन व त्रस्त महसूस कर रहे हैं।

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