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नेपाल: मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री, जिन्होंने जानकी मंदिर में पूजा-अर्चना की

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जनकपुर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी दो दिवसीय नेपाल यात्रा के दौरान जनकपुर के प्रसिद्ध जानकी मंदिर पहुंचे और वहां विशेष पूजा-अर्चना की। नेपाल के दो दिवसीय राजकीय यात्रा पर पहुंचे मोदी हवाईअड्डे से सीधे हिंदू देवी सीता के नाम पर बने जानकी मंदिर पहुंचे नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने मंदिर परिसर में मोदी का स्वागत किया। मोदी ने मंदिर में लगभग 45 मिनट से अधिक समय बिताया । इसके बाद पीएम मोदी षोडशोपचार पूजा में भी शामिल हुए। मंदिर में मोदी द्वारा प्रार्थना किए जाने के दौरान सीता और राम के भजन बजाए गए।

ज्ञात हो कि जानकी मंदिर में षोडशोपचार पूजा केवल विशेष अतिथि ही करते हैं। इसमें तांत्रिक मंत्रोपचार समेत 16 विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस धार्मिक संस्कार के दौरान सीता जी की पूजा की जाती है और उन्हें पोशाकों और आभूषणों से सजाया जाता है। मंदिर के पुजारी रामातपेश्वर दास वैष्णव ने बताया कि पूर्व राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी, ज्ञानी जैल सिंह और प्रणब मुखर्जी ने अपनी नेपाल यात्राओं के दौरान यह पूजा की थी। मोदी ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने यह पूजा की। मोदी के स्वागत के लिए हजारों लोग जानकी मंदिर परिसर में जुटे।  जानकी मंदिर भगवान राम की पत्नी सीता का जन्म स्थान माना जाता है।

गौरतलब है कि नेपाल का जनकपुर शहर, भगवान राम की पत्नी सीता की नगरी के रूप में जाना जाता है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि मिथिला के राजा जनक की राजधानी रहा जनकपुर, माता सीता की जन्मस्थली नहीं है। हिन्दू धर्म के अनुसार माता सीता का जन्म धरती से हुआ था. मिथिला में अकाल पड़ने के बाद जब राजा जनक ने एक किसान के खेत में हल चलाया तो उसी समय एक बच्ची प्रकट हुईं। इस बच्ची को राजा जनक ने अपनी बेटी के रूप में अपनाया. जनक ने जिस स्थान पर हल चलाया, वह जगह आज सीतामढ़ी के रूप में जानी जाती है. जी हां, बिहार का सीतामढ़ी ही वह जिला है जहां पर स्थित पुनौरा धाम में माता सीता का जन्म हुआ था।

इतना ही नही बताया जाता है कि नेपाल के जनकपुर में स्थित जिस जानकी मंदिर में पीएम नरेंद्र मोदी ने विशेष पूजाअर्चना की, उसका निर्माण 1911 ईस्वी में हुआ था। इस संबंध में एक दंतकथा है कि टीकमगढ़ की रानी वृषभानु कुमारी ने पुत्रप्राप्ति की कामना से इस मंदिर का निर्माण कराया था. इस मंदिर के निर्माण में उस समय 9 लाख रुपए की लागत आई थी, जिसके कारण इसे लोगनौलखा मंदिरभी कहते हैं।  भारतीय वास्तुकला और स्थापत्यशैली में बने इस मंदिर के निर्माण में लगभग 15 साल से ज्यादा समय लगा था। वर्ष 1895 में इसका निर्माण शुरू किया गया था, जो 1911 में जाकर पूरा हुआ।  यह मंदिर लगभग 5 हजार वर्गफीट क्षेत्र में फैला हुआमंदिर परिसर के आसपास लगभग 100 सरोवर और कुंड भी बने हुए हैं। आज इस मंदिर में हर साल लाखों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। विवाह पंचमी के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगता है

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