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स्वतंत्रता दिवस : राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम संदेश, हिंसा की अपेक्षा अहिंसा से आऐं पेश

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नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद देश के 71वें स्वतंत्रता दिवस समारोह की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को अपने संबोधन के दौरान 21वीं सदी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांतों को उपयोगी और प्रासंगिक बताते हुए देशवासियों से उनके सुझाए गए रास्ते पर चलने और उनके विचारों को आत्मसात करने की अपील की तथा कहा कि समाज में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

इसके साथ ही कोविंद ने 71वें स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर आज राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि इस बार स्वतंत्रता दिवस की खास बात यह है कि कुछ ही सप्ताह बाद दो अक्टूबर से महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के समारोह शुरू हो जाएंगे। गांधीजी ने न केवल स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व किया, बल्कि वह देशवासियों के नैतिक पथ-प्रदर्शक भी थे और सदैव बने रहेंगे।

इतना ही नही अपने संबोधन में उन्होंने अहिंसा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, गांधीजी का महानतम संदेश यही था कि हिंसा की अपेक्षा अहिंसा की शक्ति कहीं अधिक है। प्रहार करने की अपेक्षा संयम बरतना कहीं अधिक सराहनीय है तथा हमारे समाज में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है।

उन्होंने कहा कि गांधीजी ने अहिंसा का यह अमोघ अस्त्र हमें प्रदान किया है। उनकी अन्य शिक्षाओं की तरह अहिंसा का यह मंत्र भी भारत की प्राचीन परंपरा में मौजूद था और आज 21वीं सदी में भी हमारे जीवन में यह उतना ही उपयोगी और प्रासंगिक है।

इसके अलावा राष्ट्रपति ने गांधीजी के विचारों की गहराई को समझने के प्रयास का जरूरत पर बल देते हुए कहा, गांधीजी को राजनीति और स्वाधीनता की सीमित परिभाषाएं मंजूर नहीं थीं। चंपारण में और अन्य बहुत से स्थानों पर गांधीजी ने स्वयं स्वच्छता अभियान का नेतृत्व भी किया। उन्होंने साफ-सफाई को आत्मानुशासन और शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक माना।

वहीं उन्होंने बताया कि गांधीजी जब और उनकी पत्नी कस्तूरबा, चंपारण में नील की खेती करने वाले किसानों के आंदोलन के सिलसिले में बिहार गए तो वहां उन्होंने काफी समय स्थानीय लोगों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों, को स्वच्छता और स्वास्थ्य की शिक्षा देने में लगाया।

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